Wednesday 15 February 2012

Re-narration

भारत में, करीब दस हजार विधवा, बीना कीसी हक, और समाज द्वारा बहिष्क्रुत होके, संस्थागत नरक में रहते हैं, और राजनेता - दलाल गठजोड़ द्वारा उनका शोषण किया जा रहा है, समाजमें विधवा पुनर्विवाह वर्जित है यह घृणित प्रथाओं की वजह से, जहाँ विधवा को किसी भी अविवाहित या एक शादीशुदा औरत, के लिए "अपशकुन" माना जाता है.

देवदासी प्रणाली अभी भी दक्षिण भारतीय मंदिरों में बनी हुई है. यदि आप धारवाड़ से सड़क लेके कर्नाटक आप Saundatti के छोटे गांव के मंदिर तक पहुंच जाइए, इस गांव में देवदासी परंपरा भारत में वेश्यावृत्ति के सबसे आलोचना रूपों में अभी भी उपस्थित है,जिसमें एक युवा अविवाहित लड़की की "मंदिर से शादी" की जाती है - भगवान से शादी के बंधन में ! वह पूजारी, मंदिर के सहनिवासी और जमींदारों और धनाढ्य पुरुषों और शहर या गांव "में सत्ताधिश लोगों को सेवा देती है.

सरकारी प्रतिबंध के बावजूद 1980 के दशक में शुरू, सैकड़ों लड़कियों को गुप्त रुप से देवी Yellamma को हर साल समर्पित कर रहे हैं. Devdasi प्रणाली अभी भी भारत के कुछ हिस्सों में प्रचलित है, विशेष रूप से दक्षिण भारत में.

उपर्युक्त महिलाओं के संस्थागत शोषण के अलावा, वहाँ बहुत पुरानी परंपराओं को जो तथाकथित (सामाजिक दबाव) द्वारा चल रही है,उसमें सती, पारंपरिक हिंदू प्रथा शामिल हैं, जिसमें एक विधवा खुद उसके पति की चिता पर अपना बलिदान देती है.

शब्द "दहेज - मौत" दुनिया में कहीं और नही लेकिन भारतमें ही प्रचलित है, और भारत में समाज के सामाजिक ताने - बाने में इतनी गहराई से और व्यापक रूप से आरोपित हुआ है कि समाज के सभी वर्गों के बीच प्रचलित रूप में यह रिवाज है. इस परंपरा में दूल्हे के परिवार को शादी के समय दहेज का भुगतान करने के लिए, दुल्हन के परिवार अक्सर वित्तीय ऋण के भारी बोझ में दब जाते है. फिर भी अभी तक सब से अधिक भारतीयों इस अजीब रिवाज के लिए प्रश्न उठाने में असफल रहे है. टाइम पत्रिका में एक लेख के अनुसार, भारत में दहेज की मांग से संबंधित मौतों में 15 गुना वृद्धि हुई है, 1980 के मध्य के बाद से 1990 के दशक के मध्य तक एक वर्ष में मौतआंक ४०० से करीब ५८००का था

Re-narration by Amrapali in Hindi targeting India for this web page

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