हमने गांव सांप्रदायिक चराई भूमि और ओरान (पवित्र पेड़ों मंदिरों के लिए संलग्न) के सिकुडन के बारे में भी यह अनुभव किया है. इन क्षेत्रों को तेजी से हटाकर अन्य आर्थिक विकास परियोजनाओं के लिए दीए गए हैं. यह विडंबना ही है कि मात्र हम लोग हैं, जो सदियों से जैव विविधता के संरक्षक है और जिसके पारंपरिक जीवन शैली ने क्षेत्र की जैव विविधता को निरंतर विकसित कीया है - अब हमे हमारे पशुओं और स्थानीय पारिस्थितिकी तंत्र, दोनों के बीच जटिल संबंधों का एक सीमित समझ के आधार पर इसके उपयोग से इनकार किया जा रहा है।
Re-narration by Amrapali in Hindi targeting Rajasthan for this web page
No comments:
Post a Comment